Sunday, April 18, 2010

दोस्ती

एक बार एक खरगोश और कछुए में बड़ी गहरी दोस्ती थी वो दोनो रोज़ सुबह उठ कर जंगल में खेलने निकल जाया करते थे खरगोश पूरे जंगल से फूल, पत्तियां, फल और सब्जियां चुन कर लाता था और फिर दोनों मिल कर खाया करते थे फिर शाम होने तक दोनों लोग खेलते थे और फिर घर चले जाया करते थे धीरे धीरे कुछ दिन बाद खरगोश को लगने लगा कि कछुआ तो कुछ करता ही नहीं है बस एक जगह बैठा रहता है खरगोश दौड़ दौड़ के खाने पीने का सामान लाता है एक दिन खरगोश ने कछुए से कहा "यार कछुए हमेशा मई ही दौड़ भाग करता रहता हूँ, तुम तो कुछ नहीं करते " कछुआ बोला, "खरगोश भैया मई तो धीरे धीरे ही चल पाता हूँ " खरगोश ने कहा ,"मै कुछ नहीं जानता, अगर तुम्हे मुझसे दोस्ती बना के रखनी है तो तुम भी कुछ किया करो और अगर कल से तुम खाना-पीना नहीं ला सकते तो हमारी दोस्ती ख़तम " कछुए ने खरगोश को समझाने कि कोशिश करी लेकिन खरगोश नहीं माना कछुआ कुछ नहीं बोला उसे पाता था कि खरगोश को अपनी फुर्ती पे घमंड हो गया है
अगले दिन से उन लोगो ने साथ में खेलना बंद कर दिया खरगोश ने एक लोमड़ी से दोस्ती कर ली. लोमड़ी भी खरगोश कि तरह तेज़ भाग सकती थी अब खरगोश कछुए को भूल भी गया कुछ दिन बाद लोमड़ी जंगल में जा रही थी तभी शेर ने उसे रोका शेर बोला "अरे लोमड़ी, आज कल कहाँ रहती हो? दिखाई नहीं पड़ती" लोमड़ी बोली "अरे महाराज, मै अपने नए दोस्त खरगोश के साथ खेलती रहती हूँ शेर ने खरगोश का नाम सुना तो बोला, "मैंने सुना है खरगोश खाने में बड़ा टेस्टी होता है वो खरगोश तो तुम्हारा दोस्त है ना, एक दिन मेरी गुफा तक ले आओ उसे" लोमड़ी बोली, "महाराज वो मेरा दोस्त है " तो शेर बोला, "अगर तुमने मुझे खरगोश ला के दिया तो मै तुम्हे हमेशा अपने शिकार में से हिस्सा दिया करूंगा" लोमड़ी तो चालाक होती है, उसे लगा कि ये तो बढ़िया है हमेशा के लिए बैठे बैठे खाना मिलेगा

अगले दिन उसने खरगोश को नदी के किनारे बुलाया लोमड़ी ने कहा कि मै ४ बजे आ जाउंगी, तुम नदी के किनारे पत्थर पे बैठे रहना खरगोश मान गया लोमड़ी ने शेर को भी बता दिया कि ४ बजे खरगोश नदी के किनारे बैठा मिलेगा खरगोश ठीक ४ बजे नदी के किनारे आ के पत्थर पर बैठ गया थोड़ी देर तक उसने लोमड़ी का इंतजार किया, जब लोमड़ी नहीं आई तो उसने मुद के देखा तो उसके पीछे शेर खड़ा था खरगोश डर गया वो वहां से भागने की तरकीब सोचने लगा लेकिन उसके एक तरफ नदी थी और दूसरी तरफ शेर उसने डर के आँखें बंद कर ली उसे लोमड़ी से दोस्ती पे पछतावा हो रहा था उसे लग रहा था की शेर एक मिनट में उसे खा जायेगा लेकिन अचानक से उसे लगा की वो जिस पत्थर पे बैठा है वो पत्थर हिल रहा है उसने आँखें खोल के देखा तो वो नदी के बीच में था उसे विश्वास नहीं हुआ उसने ध्यान से देखा तो जिस पत्थर पे वो बैठा था वो पत्थर नहीं उसका पुराना दोस्त कछुआ था कछुआ ने तैर के पूरी नदी पास कर ली, और इस तरह से खरगोश की जान बच गयी खरगोश ने कछुए से माफ़ी मांग ली उसके बाद से दोनों फिर से दोस्त हो गए

3 comments:

  1. अच्छा लगा, बचपन ताजा हो गया.
    धन्यवाद.
    हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.

    मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.

    यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.

    शुभकामनाएं !


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  2. ale vaah......tyaa baat.....tyaa baat.... tyaa baat........teep it ap......

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  3. Kharagosh aur kachhuye kee kahanee ka naya roopantaran pasand aya----bahut sundar prastuteekaran.

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